Jharkhand Election: पोटका विधानसभी सीट एसटी के लिए आरक्षित है. जहां भाजपा और झामुमो के बीच ही मुख्य मुकाबला होता है. 1977 से इस सीट पर भूमिज जनजाति के नेताओं का कब्जा रहा है.
Jharkhand Election, संजय सरदार/ रंजन गुप्ता, पोटका : पोटका विधानसभा अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीट है. इस विधानसभा क्षेत्र में 3,09,894 वोटर हैं. इस सीट पर 1977 से ही भूमिज जनजाति के नेताओं का कब्जा रहा है. यहां से वर्तमान में झामुमो के संजीव सरदार विधायक हैं. उन्होंने 2019 में तीन बार की विधायक भाजपा की मेनका सरदार को 43110 वोटों से हराया था. इस सीट पर हमेशा झामुमो और भाजपा के बीच मुकाबला रहा है. इस सीट से माझी रसराज टुडू, सनातन माझी व हाड़ीराम सरदार ने दो-दो बार और सनातन सरदार व मेनका सरकार ने तीन-तीन बार प्रतिनिधित्व किया है.
वर्तमान समय में जो काम किये जा रहे हैं
पोटका में डिग्री कॉलेज की स्थापना विधायक संजीव सरदार की पहल पर हुई. सीएम शिलान्यास कर चुके हैं. काम चल रहा है. पोटका एवं डुमरिया में 30-30 बेड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनाये जा रहे हैं. पोटका में वृहद जलापूर्ति योजना के तहत घर-घर जल पहुंचाने का काम चल रहा है. प्रखंड की 34 पंचायतों के घरों में नलों से पानी पहुंचाने व बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी में शुद्ध पेयजल पहुंचाने का कार्य प्रगति पर है. प्रसिद्ध मुक्तेश्वर धाम हरिणा को पर्यटन स्थल बनाने की प्रक्रिया जारी है. वन विभाग द्वारा हरिणा मुक्तेश्वरधाम में बायो डायवर्सिटी पार्क का निर्माण कराया जा रहा है. गंगाडीह पंचायत के समीप कोल्ड स्टोरेज बन रहा है. इसके बनने से किसानों को फायदा होगा.
क्षेत्र में पलायन बड़ा मुद्दा
पोटका और डुमरिया क्षेत्र के युवा बड़ी संख्या में रोजगार के लिए यहां से पलायन कर रहे हैं. मगर उन्हें रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर कोई योजना नहीं बनायी गयी है. चिकित्सा के लिए आधारभूत संरचना नहीं है. एंबुलेंस है, पर चिकित्सक एवं चिकित्साकर्मियों की कमी से इलाज संभव नहीं हो रहा है. शिक्षा की व्यवस्था लचर है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी है. पोटका में सिंचाई की सुविधा नहीं के बराबर है. किसान आज भी बरसात के भरोसे हैं. पोटका से काट कर कोवाली को प्रखंड बनाने का मुद्दा काफी पुराना है. मगर आज तक कोवाली प्रखंड नहीं बना.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
पोटका में पहले की तुलना में काफी काम हुआ है. लेकिन, किसानों को सिंचाई का लाभ नहीं मिल पाया है. वे बारिश पर निर्भर हैं. इस इलाके में नहर है. मगर उसमें पानी नहीं आ रहा है. अगर पानी आता, तो किसानों को लाभ मिलता. स्कूलों में शिक्षकों की कमी है. रोजगार का अभाव है. यहां एक-दो माइंस एवं कंपनियां हैं, जिसमें कुछ लोगों को नौकरी मिली है. बाकी लोगों को नौकरी के लिए राज्य से बाहर पलायन करना पड़ रहा है. पलायन रोकने के लिए रोजगार की दिशा में पहल करने की जरूरत है. यहां तकनीकी शिक्षण संस्थानों की जरूरत है, ताकि विद्यार्थी हुनरमंद बन सकें.उज्ज्वल कुमार मंडल, सामाजिक कार्यकर्ता