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CM नीतीश ने PM मोदी व सुषमा को लिखे पत्र, जानिए क्या हैं उनकी मांगें

12_12_2016-nitish_121216_01बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीआरजीएफ के पैसों की मांग की है। नालंदा विवि को लेकर एक अन्य पत्र उन्होंने सुषमा स्वराज को लिखा है।

पटना [जेएनएन]। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखा है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार बीआरजीएफ का 5493.11 करोड़ रुपये वर्तमान वित्तीय वर्ष में बिहार को जारी करे। सुषमा स्वराज को लिखे पत्र में उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के आइडिया से केंद्र सरकार छेड़छाड़ नहीं करने का आग्रह किया है।

बीआरजीएफ के 5493.11 करोड़ रुपये मांगे

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि बीआरजीएफ का 5493.11 करोड़ रुपये केंद्र सरकार वर्तमान वित्तीय वर्ष में ही बिहार को जारी करे। दसवीं व ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजनाओं की लंबित परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए 494.34 करोड़ एवं 12वीं पंचवर्षीय योजना की लंबित योजनाओं को पूरा करने के लिए 4998.77 करोड़ जारी किए जाएं।मुख्यमंत्री ने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए स्वीकृत राशि में से अवशेष 902.08 करोड़ के विरुद्ध पूर्व से भेजे गए प्रस्ताव की स्वीकृति प्राथमिकता के आधार पर इसी वित्तीय वर्ष में में प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध करायी जाए।

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने दसवीं एवं ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना काल में कुल 10520 करोड़ की परियोजनाएं ऊर्जा, सिंचाई, पर्यावरण एवं वन इत्यादि क्षेत्र के लिए स्वीकृत की गयी। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति तक इन परियोजनाओं के लिए मात्र 8500 करोड़ रुपये ही केंद्र सरकार ने विमुक्त किए। नीतीश ने लिखा है कि दसवीं एवं ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजनाकाल की लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 12वी पंचवर्षीय योजनाकाल में कर्णांकित 1500 करोड़ के विरुद्ध 1005.56 करोड़ रुपय विमुक्त हुए हैैं। इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अभी 494 करोड़ रुपये की आवश्यकता है।

नालंदा विवि की मूल भावना से न करें छेड़छाड़

मुख्यमंत्री नीतीश ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिख यह अनुरोध किया कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के मूल आइडिया और उसकी भावना से केंद्र सरकार को छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। एकेडमिक स्वायत्तता और निरंतरता को बरकरार रखे बिना विश्वविद्यालय का चलना संभव नहीं है। बिहार सरकार हमेशा से नालंदा विश्वविद्यालय को सभी तरह का सहयोग उपलब्ध कराती रही है और आगे भी यह जारी रहेगा।

मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे यह प्रयास है कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव को पुनस्र्थापित किया जाए। सभी स्टेकहोल्डर से विमर्श तथा विशिष्ट विद्वानों की मदद प्राचीन विश्वविद्यालय की गरिमा को पुनस्र्थापित करने में सहायक होगा।

बिहार को विश्वास में लिया जाना चाहिए था

मुख्यमंत्री ने लिखा है कि नालंदा विश्वविद्यालय ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रो. अमर्त्य सेन, जार्ज यो व ख्यातिलब्ध विद्वान लार्ड मेघनाद देसाई के चांसलर काल में उल्लेखनीय प्रगति की। जार्ज यो ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह यह बताया है कि केंद्र सरकार का हस्तक्षेप इस विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने यह शिकायत भी की है कि पूर्व के शासी निकाय को भंग किए जाने और नए के गठन के निर्णय के मामले में उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया।

वस्तुस्थिति है कि इस विश्वविद्यालय से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय बगैर विश्वविद्यालय के चांसलर के परामर्श के हुआ। यह विश्वविद्यालय की स्वायत्त प्रकृति पर प्रश्न खड़े करता है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि केंद्र सरकार ने नालंदा मेंटर ग्रुप से यह अनुरोध किया था कि इस विश्वविद्यालय का शासी निकाय (गवर्निंग बोर्ड) तब तक कार्यरत रहेगा जबतक नालंदा यूनिवर्सिटी एक्ट 2010 को संशोधित नहीं हो जाता है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि अभी तक एक्ट में संशोधन नहीं हुआ है और केंद्र सरकार ने नये शासी निकाय का गठन कर दिया, बगैर परामर्श के। इससे विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता प्रभावित हुई है। जिस दिशा में नालंदा विश्वविद्यालय बढ़ रहा है, उससे इसके सभी स्टेकहोल्डर चिंतित हैैं। यह जरूरी है कि एकेडमिक निरंतरता और सांस्थिक प्रगति जारी रहे।

 

 

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