
“अब खून और पानी एक साथ नहीं बहेंगे”: भारत ने सिंधु जल संधि निलंबित की
नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2025।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को लेकर एक के बाद एक कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में भारत ने ऐतिहासिक ‘सिंधु जल संधि’ को निलंबित करने का निर्णय लिया। यह फैसला पाकिस्तान को सीधे तौर पर जल जीवन रेखा पर प्रभाव डालने वाला है।
क्या है सिंधु जल संधि?
19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में कराची में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) कहा जाता है।
इस समझौते के तहत:
भारत को पूर्वी नदियाँ – रावी, ब्यास और सतलुज – के जल उपयोग का पूर्ण अधिकार मिला।
जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियाँ – झेलम, चिनाब और सिंधु – के अधिकतर जल का अधिकार दिया गया।
इस समझौते को दुनिया के सबसे स्थायी जल समझौतों में माना गया, जो तीन युद्धों के बावजूद भी जारी रहा।
भारत द्वारा संधि निलंबन का प्रभाव:
1. पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था पर संकट: पाकिस्तान की खेती का बड़ा हिस्सा सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है।
2. बिजली उत्पादन पर असर: कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट इन नदियों पर आधारित हैं, जिन पर भारत अब नियंत्रण बढ़ा सकता है।
3. राजनयिक दबाव: भारत ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकती।
4. संधि की समीक्षा की प्रक्रिया: भारत अब संधि की समीक्षा और पुनर्संशोधन के विकल्प पर भी विचार कर सकता है।
“खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” – पीएम मोदी
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि आतंक के शरणदाता पाकिस्तान को पानी की एक भी बूंद नहीं दी जा सकती, जब तक निर्दोष लोगों का खून बह रहा है। यह कदम न केवल कूटनीतिक दबाव का हिस्सा है, बल्कि एक रणनीतिक जल-आधारित चेतावनी भी है।